दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि किसी सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता उसके अभिदृश्य ताल के मुख व्यास की समानुपाती और प्रयुक्त प्रकाश के तरंगदैर्घ्य की प्रतिलोमानुपाती होती है।
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दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि किसी सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता उसके अभिदृश्य ताल के मुख व्यास की समानुपाती और प्रयुक्त प्रकाश के तरंगदैर्घ्य की प्रतिलोमानुपाती होती है।
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सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्य ताल (ऑब्जेक्टिव) का मुख व्यास (अपर्चर) जितना ही अधिक होगा और जितने ही कम तरंग दैर्घ्य का प्रकाश कणों को देखने के लिए प्रयुक्त किया जाएगा, उतनी ही अधिक विभेदन क्षमता प्राप्त होगी।
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सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्य ताल (ऑब्जेक्टिव) का मुख व्यास (अपर्चर) जितना ही अधिक होगा और जितने ही कम तरंग दैर्घ्य का प्रकाश कणों को देखने के लिए प्रयुक्त किया जाएगा, उतनी ही अधिक विभेदन क्षमता प्राप्त होगी।